Sabzi ke
Gaane in Lockdown. No non-veg is available so these vegetables are the saviours but liking them ??? the poem says it all in good humor
घर मे बैठे ईन चीनीयोंकी वजहसे
गाने सूझने लगे सबजीयां की वजहसे !
(tune:
Banda parwar manlo jigar..)
बंदा 'परवल'मानलो जी भर
बन के यार मै आया हूं
किस्मतमे आपके हुजूर
फिर वही 'परवल' लाया हूं !"
(tune: Duniya
banana wae kyat ere mann me samaai..)
दुनिया बनानेवाले क्या तेरे दिल मे समाई
काहेको 'तुरीया' बनाई
(tune: main
tulsi tere aangan ki..)
मै बीवी तेरे आंगन की
क्या रेसीपी बनाऊं 'बैंगन' की
(tune:
Bindiya chamkegi..)
'भींडी' कटेगी , थोडी पकेगी
तेरी भूख उडे तो उड जाए.
(tune: Zindagi
kaisi hai paheli haai..)
ये 'दुधी'...कैसी है पहेली हाय
कभी हलवा तो कभी सबजी बनके सताय.
(tune: main shaayar toh nahin..)
मै 'गाजर' तो नहीं....मगर ऐ 'बीन्स'
जबसे देखा मैने तुृझको, 'मूली"को शायरी आ गयी.
(tune: jhoot
bole kaowa kaate..)
झूट बोले करेला खाए कडवे करेले से डरीयो,
मै मैके चली जाऊंगी तुम करेला खैयो.
'तोंडली' आहे एवढीशी
पण खायला खीळते बत्तीशी.
Nice creation. Lockdown ne na jane kya kya kara dala.
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